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एहसास

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एहसास   यह हँसी अपनी नहीं , कुछ बेगानी सी लगती है , , यह धड़कन मालूम नहीं, कुछ पुरानी सी लगती है , , यह सांसे हमदम नहीं , कुछ अनजानी सी लगती हैं , , हम तो सब कुछ लुट चुके हैं ‘साहनी’ उनके प्यार में, अब तो ज़िन्दगी भी इक परेशानी सी लगती है , ,

आँखें

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आँखें आँखें क्या देखते हो इन्होंने तो झपकना ही छोड़ दिया , नाज़ुक नयनों से आंसुओं ने भी टपकना ही छोड़ दिया , , क्या करें बात गम की जो दिया है तेरी यादों ने , इस दिल ने भी अब तो धडकना ही छोड़ दिया , , करीब पहुँचने से पहले लुट गयी मेरी मंजिल , बेजान क़दमों ने भी अब तो टहलना छोड़ दिया , , ढूढ़ते रह गए दिल-ए-चैन व सकूँ, इन लभों ने भी अब तो मुस्कुराना छोड़ दिया , , अब कहने को बाकी बचा ही क्या रहा , तेरी यादों ने भी अब तो बहकना ही छोड़ दिया , , क्या लिखे दास्ताँ दोस्तों ‘साहनी’ की , अब तो स्याही ने भी कलम से निकलना छोड़ दिया , ,

मीठा ज़हर

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प्यार का मीठा जहर प्यार का मीठा जहर हमें भी पिलाया था किसी ने , मुहब्बत के सपनो को इस दिल में बसाया था किसी ने , , इज़हार का वादा कर के यूँ ना बिछड़ेंगे हम , यादों की इस बरसात में नहलाया था किसी ने , , ये बेदर्दी ज़माना भी तारीफ़ ही करे उनकी , जो इस मासूम दिल को जलाया था किसी ने,, याद् आती हैं उनकी वो तिरछी निगाहें , जो इस दीवाने के दिल में चलाया था किसी ने , , राज क्या है मैं कैसे बताऊँ तुम्हें , दिल का सपना है कैसे दिखाऊँ तुम्हें , , कि यादों के मौसम में मुझको न जाने कैसे भूलाया था किसी ने , , ये ज़ुल्मों की दुनियां साहनी को क्या जाने, क्या उन्हें भी इस तड़प से बचाया था किसी ने , ,  

मंजिल

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मंजिल   मैं दूर जा रहा था, वो पास आ रही थी , , दिल दे रहे थे आँसू, वो आग जल रही थी , , घर तो मेरा भी छोड़ के, बरसात हो रही थी , , फिसल रहा था दिल यूँ , अब साँस रुक रही थी , , दुनिया वीरान होके, मुझे डरा रही थी , , बह रहे थे वो सागर, लगाये आस उनकी,, ‘साहनी ’ को ये दुनिया, भुलाये जा रही थी ,

रूठो मत

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रूठो मत यूँ रूठो मत ऐ मेरे दिल की धड़कन, तुम्हारे रूठने से तो मेरी जाँ ही निकल जाती है , , मुस्कुराती हो जब तुम देखकर मुझे , दिल की धडकनें ही नहीं साँस में साँस भी आ जाती है , , खो जाती हो जब मेरी आँखों से इक पल के लिए , तो छाया बादल ग़मों की वो बरसात नज़र आती है , , तुम हो शायद मेरे दिल की रोशनी , ज़िन्दगी ‘साहनी ’ की जो यार नज़र आती है , ,

अजनबी

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अजनबी न जाने क्यों तुम्हें देख के मेरा दिल घबराने लगा है , तेरी यादों के बाग़ में ये फिर क्यों जाने लगा है , , शायद अब भी तेरी बेवफ़ाई से इसका मन भरा नहीं , ठोकरों के लिए फिर तुझसे प्यार जताने लगा है , , अब तेरे बिन दिल तो कहीं लगता ही नहीं , न जाने क्यों ये अपनी धड़कन चुराने लगा है , , तुम भूल जाओ मगर ये न भूलेगा कभी, फिर अपने लभों पर तेरा नाम सजाने लगा है , , ये तो इसे मालूम है कि तू चाहती है किसी और को , फिर भी न जाने क्यों ये आँसू बहाने लगा है , , अब तो नज़रें मिलाते हुए शर्म आती है तुम्हें , क्योंकि ‘साहनी ’ भी अब अजनबी कहने लगा है , ,

नकली मुस्कराहट

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नकली मुस्कराहट     दिल में दर्द है लवों ने मुस्कुराया है , दिल लगाके तुझसे मैंने अपना मुकद्दर सुलाया है , , तेरे लवों की हँसी ने जो गम दिए हैं मुझको , यादों की तेरी महफ़िल इसी दिल में बसाया है , , न जाने कब वो खुदा रहम मुझ पर करेगा , तुझे रोशनी की खातिर घर अपना जलाया है , , खिले गुलशन से तेरे अरमां पे गम की धूप न पड़े , तेरे जीवन में हमेशा बहारों को बुलाया है , , चहरे पे हँसी तो रहती ही है ’ साहनी’, क्या घायल दिल भी आँखों से नज़र   आया है? , ,

बेवफा

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बेवफ़ा   अगर जान जाते ये दिल है बेचारा, इसे इश्क में हम इजाजत न देते , , बदलते नहीं रास्ते हम वो अपने , झूठे वादों का अगर तू सहारा न देते , , हर ज़ख्म दिल का तुम्हें यूँ न कहता, अगर दर्द दिल को दुबारा न देते , , ख़ुशी ज़िन्दगी हो तुम्हारी हमेशा, भूलकर भी तुम्हें हम दुआ ये न देते , , दर्द होता नहीं जो सीने के बगल में , दर्द वालों की ये हम ग़ज़ल लिख न देते , , यदि तुझमें गलिमत जो पहले से होती , ना सफ़र बीच तू हमसफ़र छोड़ देते , , ‘साहनी ’ गम के मरे मुहब्बत में पागल, बिन तेरे अपना जीवन बिता कैसे देते , ,

रहि-रहि के

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रहि-रहि के   काॅहें रहि-रहि के ई अगिया लगावल करेलू , जानि बुझिके तू काहें जरावल करेलू , , का हमार दिल तुहरे प्यार के लायक नैईखे, काहें अईसे तड़पाके मुआवल करेलू ,, ले ला हंसी के तु जनवां हमर ई कसम बा , झूठ के काहें चरखा चलावल करेलू ,, तुहारे अँखियाँ के कज़रा त बहकईबे करेला, काहें मारि-मारि मुस्की मुआवल करेलू , , तुहारे देहियाँ के खुशबू से बहक जाला मनवा , काहें ओ सिधुआ बेचारा के पगलावल करेलू , , तोहरे बोलिया से खार भईल कोयलिया के बोली , काहें बोलि-बोलि जियरा लुभावल करेलू , , भोरे पिपरा के तरे सांझें अमवां के नीचे , काहें चहकत चिरईया उड़ावल करेलू , , दिल-ए-नाज़ुक गंवारा सितम ‘साहनी ’ के , काहें दे के तू असरा खिझावल करेलू , ,

सपना में

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सपना में   एंगां सपना में आके जागवल न करऽ, हमार पुरनकी बेमरिया बढावल ना करऽ,, तुहरे अँखियाँ के कज़रा हई बही जाई सगरो , मोती अशुआ के अईसन चुआवल ना करऽ,, दूरी दिलवा के हमसे बढ़ा के ए जान, अईसे पानी बिन मछरिया तड़पावल ना करऽ,, ई नजरिया के छूड़ी करेजवा में चला के, हम पे बड़की बिजुरिया गिरावल ना करऽ,, मारी मुसुकी के जादू   तनी देखि हमरे ओरियां , पानी दे के हई पौधवा जियावल त करऽ,, अईसे सबसे नजरिया लड़ा के ऐ गोरी , ‘साहनी ’ के बेमौत मुआवल ना करऽ,,

मेरी वफ़ा

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मेरी वफ़ा     खुदा गवाह है मेरे नज़रबानों का, कि दिल ने तेरे सिवा इबादत नहीं की , तु समझती है शायद लफंगों में मुझको , भूले वादों से मैंने शरारत नहीं की , , तेरी नज़रों का धोखा ही है तेरे सिर पे , इश्क ने मेरे दिल को इजाजत नहीं दी , , ये रास्ते के वास्ते होते बहुत कठिन हैं , दो राहे प्यार ने हिफाज़त नहीं की , , इन बाज़ुओं में देके दुनिया के ये झमेले , तेरे प्रेम ने भी मेरी वकालत नहीं की , , जानकर गरीब मुझको तूने ठुकरा दिया जो , तेरे दिल से मेरे दिल ने शिकायत नहीं की , , वक़्त बेवफा था कि तू बेवफा थी , ये समझने में मेरी गलफ़त कहाँ थी , , फक्र है मुझे तुझ पर दर्द देने में मुझको , जहर देने में तेरी इनायत कहाँ थी , , ‘साहनी ’ बीच नदिया अकेले जो गम के , ख़ुशी देने को तुझमें किफ़ायत कहाँ थी , ,

इंतजार वक़्त का

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इंतजार वक्त का ऐ चाँद अब ठहर जा कि रात अभी बाकी है , बात अभी बाकी है , , यादें हैं सिर्फ उसकी , है इंतजार उसका , , मेरे लवों पे सजता, हर पल है नाम जिसका , ,   होने को मेरा उससे इज़हार अभी बाकी है , ऐ चाँद ..................१. सांसो को है सहारा, दिल ने जिसे पुकारा , , सागर में इस दुखों के, इक है वही किनारा ,, गुज़रे हुए पलों का इकरार अभी बाकी है , ऐ चाँद ......................२. नज़रों का फ़साना , दिल ने इसे न जाना , , ‘साहनी ’ कसम   तू खाके , यह आशिकी निभाना , , बिछड़े दो प्रेमियों का मिलन-प्यार अभी बाकि है , ऐ चाँद .........३.

कौन?

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कौन बता कौन इतना टूटकर चाहता है तुझे , उससे मैं भी , जरा मिल तो लूं , , क्या सचमुच बसा रखा है , उसने तुझे अपने दिल में , उसके सीने में तेरी धड़कन जरा सुन तो लूं , , डर है ना तुमको दे वो सितम जिंदगी में , वादे वफ़ा के उससे कुछ कर तो लूं , , लग जाये तुझे भी ये मेरी उमरिया , मालिक-ए-दुनिया से दुआ कर तो लूं , , बीत जाए तेरी ये ज़िन्दगी हद खुशामत , अपनी ही सिसकियों से आह भर तो लूं , , भूलकर भी तुझे याद सताए ना ‘साहनी ’ की , सौदा-ए-दवा की ऐसी कोई कर तो लूं , ,

जरुरत

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जरुरत मेरा बाग़ सजाने के लिए, इस फिज़ा की जरुरत नहीं,, तेरी आहट बताने के लिए बताने के लिए, मुझे इन चश्मानों की कोई जरुरत नहीं,, आज मैं भी जो होता करीब अपने मंजिल के, तो सर छुपाने को तेरी जरुरत नहीं,, जान जाती जो तू उस खुदा की निगाहें , पैर अपने इस पथ से डगमगाने की जरूरत नहीं ,,  

तलाश

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तलाश उस सुबह की तलाश है, उस शाम की तलाश है,, दर्द कर दे जो कम, उस जाम की तलाश है,, इन जालिमों की दुनियां में कहाँ जाएँ यारों, हमें तो मेरे हमदम के मुकाम की तलाश है,, ऐसी हालत में कैसे ढोयें रंजो गम के ये झमेले, इस मरीज़-ए-नवाब को अब आराम की तलाश है,, आज दे दे ख़ुशी जिन्दगी को जो हमेशा, वक़्त के पेड़ पर जादुई आम की तलाश है,, कर दिया जिसने घायल प्यार में मेरे खुद को, सितम के मारे उस मासूम, 'साहनी' बदनाम की तलाश है,,